श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर, अधर मुरली गिरधरम ।
मुकुट कुण्डल कर लकुटिया, सांवरे राधेवरम ।। 1 ।।
कूल यमुना धेनु आगे, सकल गोपयन के मन हरम ।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहन, चरण सुख नित सागरम ।। 2 ।।
करत केल कलोल निश दिन, कुंज भवन उजागरम ।
अजर अमर अडोल निश्चल, पुरुषोत्तम अपरा परम ।। 3 ।।
दीनानाथ दयाल गिरिधर, कंस हिरणाकुश हरणम ।
गल फूल भाल विशाल लोचन, अधिक सुन्दर केशवम ।। 4 ।।
बंशीधर वासुदेव छइया, बलि छल्यो श्री वामनम ।
जब डूबते गज राख लीनों, लंक छेद्यो रावनम ।। 5 ।।
सप्त दीप नवखण्ड चौदह, भवन कीनों एक पदम ।
द्रोपदी की लाज राखी, कहां लौ उपमा करम ।। 6 ।।
दीनानाथ दयाल पूरण, करुणा मय करुणा करम ।
कवित्तदास विलास निशदिन, नाम जप नित नागरम ।। 7 ।।
प्रथम गुरु के चरण बन्दों यस्य ज्ञान प्रकाशितम ।
आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा, सेविते शिव संकरम ।। 8 ।।
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव, कृष्ण यदुपति केशवम ।
श्रीराम रघुवर, राम रघुवर, राम रघुवर राघवम ।। 9 ।।
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव, वासुदेव श्री वामनम ।
मच्छ-कच्छ वाराह नरसिंह, पाहि रघुपति पावनम ।। 10 ।।
मथुरा में केशवराय विराजे, गोकुल बाल मुकुन्द जी ।
श्री वृन्दावन में मदन मोहन, गोपीनाथ गोविन्द जी ।। 11 ।।
धन्य मथुरा धन्य गोकुल, जहाँ श्री पति अवतरे ।
धन्य यमुना नीर निर्मल, ग्वाल बाल सखावरे ।। 12 ।।
नवनीत नागर करत निरन्तर, शिव विरंचि मन मोहितम ।
कालिन्दी तट करत क्रीड़ा, बाल अदभुत सुन्दरम ।। 13 ।।
ग्वाल बाल सब सखा विराजे, संग राधे भामिनी ।
बंशी वट तट निकट यमुना, मुरली की टेर सुहावनी ।। 14 ।।
भज राघवेश रघुवंश उत्तम, परम राजकुमार जी ।
सीता के पति भक्तन के गति, जगत प्राण आधार जी ।। 15 ।।
जनक राजा पनक राखी, धनुष बाण चढ़ावहीं ।
सती सीता नाम जाके, श्री रामचन्द्र प्रणामहीं ।। 16 ।।
जन्म मथुरा खेल गोकुल, नन्द के ह्रदि नन्दनम ।
बाल लीला पतित पावन, देवकी वसुदेवकम ।। 17 ।।
श्रीकृष्ण कलिमल हरण जाके, जो भजे हरिचरण को ।
भक्ति अपनी देव माधव, भवसागर के तरण को ।। 18 ।।
जगन्नाथ जगदीश स्वामी, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम ।
द्वारिका के नाथ श्री पति, केशवं प्रणमाम्यहम ।। 19 ।।
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़तनिशदिन, विष्णु लोक सगच्छतम ।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी, कविदत्त दास समाप्ततम ।। 20 ।।
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